सांसद और विधायकों की पेंशन: क्या यह जनता के पैसे की बर्बादी है?| MPs & MLAs Pension: Waste of Public Money?

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भारत में सांसदों और विधायकों की पेंशन व्यवस्था: एक विस्तृत अध्ययन

भारत में सांसदों और विधायकों को पेंशन देने की व्यवस्था समय के साथ विकसित हुई है। यह व्यवस्था उन जनप्रतिनिधियों को सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई थी, जिन्होंने अपनी सेवाएं जनता को समर्पित की हैं। हालांकि, समय-समय पर इस पेंशन प्रणाली को लेकर बहस होती रही है, और कई बार इसमें संशोधन भी किए गए हैं।

https://youtu.be/NbiJ91uHMjI?si=q6VtXc1r2Ag4xJ02

Pension system started for MPs (MPs & MLAs Pension EXPOSED)

भारतीय संसद में सांसदों को वेतन, भत्ते और पेंशन देने की व्यवस्था 1954 में लागू हुई थी। इसके लिए “संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम, 1954” बनाया गया, जिसके तहत सांसदों को उनके कार्यकाल के बाद पेंशन प्राप्त होने लगी।
https://youtu.be/oeQrTqHNudo?si=lR5W1gchQcuKOk_d

मुख्य प्रावधान: (MPs & MLAs Pension EXPOSED)

1. आरंभिक पेंशन: जब यह व्यवस्था शुरू हुई, तब केवल लंबे समय तक सेवा करने वाले सांसदों को पेंशन मिलती थी।


2. संशोधन: समय के साथ इसमें कई संशोधन हुए, जिससे अधिक सांसदों को इस सुविधा का लाभ मिलने लगा।


3. वर्तमान स्थिति: अब कोई भी सांसद, जिसने संसद में एक कार्यकाल पूरा किया हो, वह पेंशन का हकदार होता है।






विधायकों के लिए पेंशन व्यवस्था की शुरुआत
(MPs & MLAs Pension EXPOSED)

विधायकों को पेंशन देने की शुरुआत प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा अलग-अलग समय पर की गई। राज्यों में विधायकों की पेंशन का निर्धारण राज्य विधानसभाओं के कानूनों के अनुसार किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:
(MPs & MLAs Pension EXPOSED)
1. अलग-अलग प्रावधान: हर राज्य में विधायकों की पेंशन के लिए अलग-अलग नियम लागू हैं।
2. न्यूनतम कार्यकाल: कुछ राज्यों में विधायकों को पेंशन के लिए न्यूनतम सेवा अवधि पूरी करनी होती है, जबकि कुछ राज्यों में ऐसा नहीं है।

3. पुनरीक्षण: समय-समय पर विधायकों की पेंशन में वृद्धि की जाती रही है।

सांसदों और विधायकों की पेंशन का निर्धारण कैसे होता है?

1. पात्रता:

संसद या विधानसभा में कम से कम एक कार्यकाल (पांच वर्ष से कम भी हो सकता है) पूरा करने वाले सांसद/विधायक को पेंशन मिलती है।

कुछ राज्यों में, यदि कोई विधायक एक वर्ष से भी कम कार्यकाल पूरा करता है, तब भी वह पेंशन के लिए योग्य होता है।


2. पेंशन की राशि:

समय के साथ इसमें संशोधन किए गए हैं।

सांसदों को 25,000 रुपये प्रति माह या अधिक पेंशन दी जाती है।

विधायकों की पेंशन राज्य सरकारें तय करती हैं, जो भिन्न-भिन्न होती है।


3. अतिरिक्त लाभ:

कुछ राज्यों में विधायकों को मेडिकल सुविधाएं, यात्रा भत्ता और अन्य आर्थिक सहायता भी पेंशन के अलावा दी जाती है।

कई राज्यों में एक से अधिक कार्यकाल पूरे करने वाले विधायकों को अतिरिक्त पेंशन दी जाती है।

विवाद और संशोधन

1. बढ़ती हुई पेंशन और लाभ:

सांसदों और विधायकों की पेंशन में बार-बार संशोधन होने से यह अक्सर विवादों में रही है।

आलोचकों का मानना है कि अन्य सरकारी कर्मचारियों की पेंशन व्यवस्था को बदला जा रहा है, लेकिन जनप्रतिनिधियों की पेंशन में लगातार वृद्धि की जा रही है।

2. “एक विधायक, एक पेंशन” नीति:

पंजाब सरकार ने हाल ही में इस नीति को लागू किया है, जिसके तहत एक विधायक को केवल एक कार्यकाल की पेंशन मिलेगी, भले ही उसने कई बार चुनाव जीते हों।

अन्य राज्यों में भी इस नीति को लागू करने की मांग की जा रही है।

3. सरकारी कर्मचारियों और सांसदों/विधायकों की पेंशन में अंतर:

सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बंद कर दिया गया, लेकिन सांसदों और विधायकों की पेंशन बरकरार है।

इस असमानता को लेकर अक्सर बहस होती है।

वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएं
1. क्या पेंशन बंद हो सकती है?

कई संगठनों और नागरिक समूहों ने सांसदों और विधायकों की पेंशन खत्म करने या इसमें कटौती करने की मांग की है।

कुछ लोगों का मानना है कि सांसदों और विधायकों को केवल अपने कार्यकाल के दौरान वेतन और भत्ता मिलना चाहिए, न कि आजीवन पेंशन।


2. संभावित सुधार:

पेंशन की अधिकतम सीमा तय करना।

“एक व्यक्ति, एक पेंशन” नीति लागू करना।

सांसदों और विधायकों को केवल उनके कार्यकाल के दौरान ही वित्तीय लाभ देना।





निष्कर्ष

भारत में सांसदों और विधायकों की पेंशन की व्यवस्था 1954 से शुरू हुई और समय के साथ इसमें कई संशोधन हुए। हालांकि, यह व्यवस्था अब विवाद का विषय बन गई है। कुछ राज्य सरकारें इसमें सुधार कर रही हैं, जबकि कुछ राज्यों में अभी भी पुरानी व्यवस्था लागू है।

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस पेंशन व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव होता है या नहीं।

भारत में सांसदों और विधायकों की पेंशन से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQs)

1. भारत में सांसदों और विधायकों को पेंशन कब से मिलनी शुरू हुई?

उत्तर: सांसदों के लिए पेंशन की व्यवस्था 1954 में “संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम, 1954” के तहत की गई थी। वहीं, विधायकों के लिए पेंशन की शुरुआत विभिन्न राज्यों में अलग-अलग समय पर हुई। प्रत्येक राज्य सरकार ने अपने नियमों के अनुसार इस प्रणाली को लागू किया।

2. क्या सांसदों और विधायकों के लिए न्यूनतम कार्यकाल की कोई शर्त होती है?

उत्तर:

सांसदों के लिए न्यूनतम कार्यकाल की कोई अनिवार्यता नहीं है। यहां तक कि एक दिन के लिए भी संसद सदस्य रहने पर पेंशन का अधिकार मिलता है।

विधायकों के लिए स्थिति राज्यों के हिसाब से अलग-अलग है। कुछ राज्यों में न्यूनतम कार्यकाल की शर्त लागू है, जबकि अन्य में नहीं।

उदाहरण के लिए, असम में कम से कम चार साल का कार्यकाल जरूरी है, जबकि ओडिशा में यह सीमा मात्र एक वर्ष है।


3. सांसदों और विधायकों को कितनी पेंशन मिलती है?

उत्तर:

सांसदों को सेवानिवृत्ति के बाद ₹25,000 प्रति माह पेंशन मिलती है, और हर अतिरिक्त वर्ष की सेवा के लिए ₹2,000 अतिरिक्त मिलते हैं।

विधायकों की पेंशन राशि प्रत्येक राज्य में भिन्न होती है।

कुछ राज्यों में हर अतिरिक्त कार्यकाल के लिए पेंशन राशि बढ़ाई जाती है।

उदाहरण के लिए, राजस्थान में विधायकों को ₹35,000 प्रति माह लगभग पेंशन मिलती है, और प्रत्येक अतिरिक्त कार्यकाल के लिए ₹8,000 की लगभग वृद्धि होती है।


4. क्या एक से अधिक बार सांसद या विधायक रहने पर अलग-अलग पेंशन मिलती है?

उत्तर:

हां, यदि कोई व्यक्ति विधायक और सांसद दोनों रह चुका है, तो उसे दोनों पदों की पेंशन मिलती है।

कई राज्यों में, प्रत्येक कार्यकाल के लिए अतिरिक्त पेंशन दी जाती है।

हालांकि, पंजाब सरकार ने ‘एक विधायक, एक पेंशन’ नीति लागू की है, जिससे विधायकों को सिर्फ एक पेंशन मिलेगी, भले ही उन्होंने कितने भी कार्यकाल पूरे किए हों।


5. क्या सांसदों और विधायकों की पेंशन में बदलाव किया गया है?

उत्तर: कुछ राज्यों में पेंशन प्रणाली में संशोधन किए गए हैं।
पंजाब में “एक विधायक, एक पेंशन” नियम लागू किया गया, जिससे विधायकों को केवल एक पेंशन मिलेगी।

कोविड-19 महामारी के दौरान सांसदों के वेतन और भत्तों में अस्थायी रूप से 30% की कटौती की गई थी, लेकिन पेंशन में कोई बदलाव नहीं किया गया।

राष्ट्रीय स्तर पर सांसदों की पेंशन समाप्त करने पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन इस मुद्दे पर लगातार बहस चल रही है।


निष्कर्ष: भारत में सांसदों और विधायकों की पेंशन व्यवस्था समय के साथ बदली है, और कुछ राज्यों ने इसे सीमित करने के लिए सुधार किए हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसे पूरी तरह खत्म करने का कोई आधिकारिक निर्णय नहीं लिया गया है।

“सांसद और विधायकों की पेंशन: क्या यह जनता के पैसे की बर्बादी है?” | “MPs & MLAs Pension: Waste of Public Money?”

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